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AI in Agriculture : आज AI न सिर्फ टेक्नोलॉजी क्षेत्र में आगे आ रहा है बल्कि ये कृषि के क्षेत्र में भी अपना बहुत बड़ा योगदान दे रही है। आज के इस टेक्नोलॉजी के युग मे खेतों में हल चलाने और बीज बोने की परंपरा अब नए टेक्नोलॉजी के ,नए रंग में ढल रही है। बीते कुछ सालों में क्लाइमेट चेंज ( मौसम परिवर्तन ) की वजह से मौसम का रुख काफी बदल गया है । जिससे ना सिर्फ खेती की पैदावार पर असर पड़ा है , बल्कि किसानों के लिए कीटों और बीमारियों का खतरा भी बढ़ गया है । हालात जब सामान्य से अलग हुए तो महाराष्ट्र के किसानों ने मदद के लिए AI ( आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ) का रुख किया । इसके लिए उन्होंने महाराष्ट्र में स्थित बारामती के Agricultural Devlopment Trust ( ADT ) के साइंटिस्ट से मदद ली और Microsoft की AI टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना शुरू किया । वही माइक्रोसॉफ्ट के CEO सत्य नडेला ने सोशल मीडिया पर वीडियो शेयर कर इस बारे में जानकारी भी दी है।
क्या है यह AI टेक्नोलॉजी फार्मिंग ( कृषि )
इसके इस्तेमाल से किसान कैसे स्मार्ट फार्मिंग कर रहे हैं, भारत के किसान जो सदियों से प्रकृति के साथ तालमेल बिठाते आए हैं। अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ( AI ) को अपनाकर खेती को एक नई दिशा दे रहे हैं ,यह बदलाव ना सिर्फ उनकी मेहनत को आसान बना रहा है , बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्मार्ट और उज्जवल भविष्य की नीव भी रख रहा है । जनवरी 2024 में ADT बारामती गन्ने से लेकर टमाटर और भिंडी तक करीब एक दर्जन फसलों के लिए अपना AI प्रोजेक्ट लेकर आया था। जिसमें AI से मिली जानकारियों के आधार पर खेती की जाती है। इसे Form of the future नाम दिया गया है । इस टेक्नोलॉजी के लिए करीब 2000 किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया है । पहले ट्रायल में गन्ने पर फोकस करते हुए, इनमें से 1000 किसानों को चुना गया है शुरुआती स्तर पर 200 किसानों ने 2024 के मध्य इसके इस्तेमाल से खेती शुरू की है ।

यह टेक्नोलॉजी कैसे काम करता है
बारामती के एक किसान के खेत में बिजूका की जगह एक मेटल स्ट्रक्चर लगा हुआ है जो असल में एक Weather Station ( कृषि केंद्र ) के रूप में है इसके ऊपर हवा, बारिश, धूप ,तापमान और नमी का पता लगाने वाले डिवाइस सपोर्ट लगा हुआ है। और इससे जो डाटा व जानकारी मिलता है उसे सैटेलाइट और ड्रोन से मिली तस्वीरों और पुराने डटा के साथ जोड़ करके विश्लेषण किया जाता है । इस विश्लेषण के बाद एक मोबाइल ऐप के जरिए किसानों को डेली अलर्ट्स भेजे जाते हैं। अलर्ट में सिंचाई करने, उर्वरक डालने और कीटनाशक छिड़कने के बारे में बताया जाता है। सैटेलाइट मैप उसी जगह पिन पॉइंट करता है जहां एक्शन लेने की जरूरत होती है। यानी कि खेत की किसी खास एरिया में ही जहाँ पर इसकी जरूरत उस एरिया के बारे में जानकारी देता है। इस डिवाइस का मकसद है, कि सही समय पर ,सही कदम उठाया जाए । ताकि बदलती परिस्थितियों के हिसाब से अच्छी फसल मिले । यहाँ के किसानों ने अपने चार एकड़ के खेत में से सिर्फ एक एकड़ में टेस्ट प्लॉट के तौर पर AI की मदद से खेती शुरू की है। App से मिलने वाले सभी निर्देशों का सख्ती से पालन किया जा रहा है । फसल तो पूरी तरह से नवंबर 2025 तक तैयार होगी। लेकिन किसानों को इसका फर्क व असर अभी से ही दिख रहा है
यह टेक्नोलॉजी सैटेलाइट के साथ-साथ माइक्रोसॉफ्ट के डाटा प्लेटफार्म Azure AI डटा मैनेजर फॉर एग्रीकल्चर से मौसम, मिट्टी और दूसरा डाटा जुटाता है । इस प्लेटफार्म को पहले फार्म बीट्स कहा जाता था। इससे किसान अपने मोबाईल में कुछ ही क्लिक् में साफ तौर पर यह देख पाते हैं । उनके खेत में क्या हो रहा है। उसकी पूरी जानकारी अपने मोबाइल पर देख सकते हैं। फार्म बीट्स पर माइक्रोसॉफ्ट रिसर्च का ओपन सोर्स रिसर्च प्रोजेक्ट प्रोजेक्ट फसल के पुराने डाटा के साथ नए डाटा को विश्लेषण करता है। इससे कई तरह की जानकारियां मिलती हैं । जैसे फसल को पूरा पानी मिल रहा है या नहीं । खेत में कीट है या नहीं । और अगर हैं तो कौन से कीट हैं। और इनसे कैसे छुटकारा पाया जा सकता है। जेनरेटिव एआई से तो काम और भी आसान हो गया है माइक्रोसॉफ्ट Azure AI Service किसानों के लिए तकनीकी जानकारियों को साधारण भाषा में बदल देती है जैसे सैटेलाइट से मिले डाटा की मदद से किसानों को जो जानकारी दी जाती है वह एक मोबाइल ऐप की मदद से अंग्रेजी हिंदी और स्थानीय भाषा मराठी में उपलब्ध कराई जाती है। इसमें किसानों को फसल की पूरी लाइफ साइकिल का प्लान भी आसान भाषा में मिल जाता है । जिससे उन्हें यह पता चल जाता है । कि कब क्या करना है। इससे खेती में किसी तरह का अनुमान लगाने की जरूरत नहीं रह जाती है। यह मोबाइल ऐप क्लिक टू क्लाउड अमेरिका की कंपनी है और इसके ग्राहक के रूप में अमेरिका की बड़ी एग्रीकल्चर कंपनियां मध्य पूर्वी सरकारें और दक्षिण पूर्व एशिया की प्लांटेशन कंपनियां शामिल हैं। इसके CEO हैं। प्रशांत मिश्रा जो महाराष्ट्र के नागपुर जिले के पास ही पले बढ़े हैं उन्होंने बड़ी संख्या में किसानों को कर्ज तले आत्महत्या करते देखा है। उनका कहना है कि हम छोटे किसानों को वही डाटा, टूल्स और इंटेलिजेंस दे रहे हैं जो हम बड़ी कंपनियों को देते हैं महाराष्ट्र के अलावा इस तकनीक को अपना के लिए छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश की सरकार से भी बात की जा रही है । इस तकनीक का इस्तेमाल करने वाले किसान अब रोजाना Agree Pilot App देखते हैं और उसी के मुताबिक काम करते हैं। किसानों ने इस प्रोजेक्ट के तहत खेती में बदलावों का अनुभव किया है।

उदाहरण – खेत में लगाई गई गन्ना हर कलम से 10 या इससे ज्यादा टिलर्स ( कलियां ) निकले हैं। जिनसे गन्ना बनता है पहले इनकी संख्या 5 से 6 होती थी। किसानों का कहना है,कि पारंपरिक तरीके से बोए गए गन्ने में उन्हें जरूरत हो या ना हो पूरे खेत में फर्टिलाइजर डालना पड़ता ही है । और सिंचाई करनी पड़ती है। जिससे मिट्टी की क्वालिटी खराब होती है , अब वह रोजाना मोबाइल में अपने खेत की कंडीशन चेक कर लेते हैं। Agree Pilot App पर वह अपने खेत का सैटेलाइट मैप ( नक्शा ) खोलते हैं। जिसमें हरियाली के अलग-अलग शेड दिखते हैं। इससे पता चल जाता है। खेत का कौनसा हिस्सा ज्यादा हरियाली है और कौनसा हिस्सा कम है। इस तरह वह केवल उसी जगह पर सिंचाई, फर्टिलाइजर या कीटनाशक का छिड़काव करते हैं जहां जरूरत है इससे फसल भी अच्छी रहती है और उन पर खर्चा भी कम पड़ता है। इस ऐप में उन्हें ब्राउन रस्ट रोग के खतरे का अलर्ट भी मिलता है। फंगीसाइड कीटनाशक दवा डालने का सुझाव दिया जाता है। खेत में खरपतवार होने का अलर्ट भी किसानों को दिया जाता है । जो किसान अपने खेत से दूर रहते हैं वह अलर्ट के हिसाब से खेत में काम करने वालों को निर्देश दे देते हैं। इस तकनीक से यह भी पता चलता है कि फसल काटने के लिए कौन सा समय सबसे सही रहेगा । यह ऐ स्थानी खेत में टेस्टिंग और शुगर प्रोसेसर्स के पुराने डाटा के हिसाब से इस बात का भी अनुमान लगाता है । कि किस समय गन्ने में सुक्रोज या चीनी की मात्रा सबसे ज्यादा होती है। गन्ने में चीनी का यह उच्च स्तर केवल 20 दिन रहता है इसके बाद धीरे-धीरे उसमें चीनी का उच्च स्तर कम होने लगता है ।
इसके इस्तेमाल से फायदे
इस तकनीक के इस्तेमाल से गन्ने के टेस्ट प्लॉट में बड़े और मोटे गन्ने उगते हैं जिनका वजन सामान्य की तुलना में 30 से 40 % तक ज्यादा होता है और से 20 % तक ज्यादा चीनी मिलती है । इस तरीके से खेती करने में कम पानी और कम फर्टिलाइजर की जरूरत पड़ती है । और फसल का पूरा चक्र भी 18 महीने के बजाय घटकर 12 महीने रह जाता है । एक्सपर्ट्स का कहना है कि जैसे-जैसे किसान इस ऐप को इस्तेमाल करेंगे यह और भी सटीक होता जाएगा और AI ज्यादा बेहतर तरीके से डटा पैटर्न को विश्लेषण कर सकेगा 2025 के अंत तक जब यह फसल चक्र पूरा होगा। तब तक यह सिस्टम इतना सक्षम हो जाएगा कि यह एकदम सटीक जानकारी दे सकेगा । आपको बता दें कि 2024 के मध्य में महाराष्ट्र के बारामती के आसपास के करीब 200 किसानों ने टेस्ट प्लॉट में खेती शुरू की इनमें से हर किसान ने करीब एक एकड़ जमीन में खेती शुरू की है । इन सभी ने ट्रायल का हिस्सा बनने के लिए भूमि परीक्षण और ट्रेनिंग फीस के तौर पर 10000 रुपये ADT बारामती को दिए हैं। वहीं ये ट्रस्ट ने हार्डवेयर और अन्य खर्च मिलाकर हर किसान पर ₹ 50000 तैयार है। हरित क्रांति से आगे अब नई लहर के बारे में सोचिए AI और डाटा के साथ हम कृषि क्षेत्र में अगली बड़ी क्रांति के मुहाने पर खड़े हैं भारत में अभी शुरुआत हुई है । लेकिन तैयारी पूरी है।
निष्कर्ष AI in Agriculture
1.AI in Agriculture: आज के इस टेक्नोलॉजी के साथ कृषि करना ना सिर्फ आपको अच्छा जानकारी देगी। बल्कि आपको अच्छी फसल के साथ साथ आपकी समय बचत , कम मेनहत और लागत को को भी कम करेगा। जिससे कृषि के गुणवत्ता में सुधार के साथ अच्छा लाभ व इन नए अवसरों के साथ ,देश का अच्छा विकास होने में भी मदद मिलेगा। आज AI न सिर्फ दुनिया बदल बल्कि हमारे काम करने के तरीक़े को भी बदल रही है। आज के समय इन टेक्नोलॉजी के साथ चलना बहुत जरूरी है।
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1.AI in Agriculture इण्डिया में कहा इस्तेमाल किया जा रहा है ?
महाराष्ट्र के बारामती में
2.AI in Agriculture भारत महारास्ट्र में माइक्रोसॉफ्ट के मदद से संचालित कृषि के CEO कौन है।
प्रशांत मिश्रा है
3. इस कृषि में क्या ai का पूरा इस्तेमाल किया जा रहा है
जी हा पूरा AI आधारित कृषि है।